तुम कौन हो भाई ? "भक्त" या "चाटुकार" ? सुनने में ये अजीब लग सकता है लेकिन, आज भारत की अधिकांश आबादी अब सिर्फ इसी दो जाति या धर्म में सिमट कर रह गई है। यकीन नहीं होता तो एक सरसरी निगाह सोशल मीडिया पर हो रही तक़रीरों पर दे डालिए। सोशल मीडिया के वर्चुअल वर्ल्ड में आप किस जाति या धर्म से ताल्लुक रखते हैं ये आपके नाम या उसके साथ जुड़े सरनेम से तय नहीं होता। बल्कि ये तय हो रहा है आपकी राजनैतिक विचारधारा से। भाजपा समर्थकों को विरोधी दलों के लोगों ने "भक्त" कहना शुरू कर दिया प्रत्युत्तर में भाजपा समर्थकों ने विरोधियों को "चाटुकार" की संज्ञा दे डाली। और ये सिलसिला लगातार चल ही रहा है।

अब पूरी सोशल मीडिया में कोई भी शर्मा जी, सिंह साहब,यादव जी, खान साहब या मि॰ डेविड नहीं रहे। ये सब के सब या तो भक्त हैं या फिर चाटुकार। मीडिया का भी ऐसा ही धर्मांतरण हो चुका है, भक्त मीडिया या चाटुकार मीडिया। हालात ऐसे हो चुके हैं कि कई बार विचारधारा के आधार पर लोगों की वास्तविक जाति या धर्म तक को मानने से इन्कार कर, उन्हें फ़ेक आई डी वाला भी घोषित कर दिया जाता है। इन सारे हालातों की वजह पिछले लोकसभा चुनाव 2014 को माना जाता है। जिसके बारे में कुछ लोग तो यहाँ तक मानते हैं कि भारत में 2014 का लोकसभा चुनाव इसलिए भी ऐतिहासिक था क्योंकि ये पहला चुनाव था जो पूरी तरह से Facebook पर लड़ा गया था।

2014 में हुए उस चुनाव के समय से ही राजनीति में सोशल मीडिया का इस्तेमाल एक बड़े पैमाने पर होना शुरू हो गया था जो अब संभवतः अपने चरम स्थिति पर है। पिछला लोकसभा का चुनाव भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ने का फैसला किया था। जैसा कि सभी जानते हैं उस चुनाव की प्रारम्भिक तैयारियों से ले कर पूरे चुनावी प्रक्रिया के सम्पन्न होने तक भाजपा ने सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग किया। सोशल मीडिया के हर प्लेटफॉर्म पर विभिन्न डिजिटल पी॰ आर॰ एजेंसियों की मदद से शानदार कैम्पेन चलाया गया। इस कैम्पेन का ज़बरदस्त फायदा नरेंद्र मोदी और उनकी भाजपा को हुआ। सोशल मीडिया की वजह से बहुत बड़ी तादाद में नरेंद्र मोदी के नए समर्थक बने और उनका जुड़ाव भाजपा से हुआ। इसकी देखा-देखी बाद में लगभग सभी राजनैतिक दलों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल शुरू कर दिया और उनके समर्थकों के अलग-अलग समूह सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हो चुके हैं।

सोशल मीडिया को यदि आधुनिक युग का अड्डा या चौपाल कहें तो शायद कुछ गलत नहीं होगा। वैसे भी बदलते हुए आधुनिक परिवेश में वो पुराने अड्डे या चौपाल बचे ही कहाँ हैं। पहले इन अड्डों चौपालों पर लोग एक कप चाय की चुसकियाँ लेते-लेते जमाने भर की सामाजिक, राजनीतिक, खेल अथवा सिनेमा की चर्चाएँ कर लिया करते थे। अब वो सारी चर्चाएँ घर बैठे, ट्रेन या बस में सफर करते हुए या फिर ऑफिस/दफ्तर में काम करते हुए ही हो जाया करती हैं। Facebook, WhatsApp, Twitter, You Tube या Google+ जैसे अनगिनत प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं। अखबारों, पत्रिकाओं से लेकर टीवी समाचारों तक कि व्याख्या बड़ी ही सहजता और सुगमता के साथ सोशल मीडिया पर ही हो जाती है। बहरहाल, जिस तरह से भारत के सारे जाति और धर्म के लोग अब सिर्फ "भक्त" या "चाटुकार" की श्रेणी में बंटते जा रहे हैं यह हैरान करने वाला है और एक नए विमर्श की शुरुआत करने वाला भी।
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